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शिक्षक दिवस पर प्रकृति विशेष

आज शिक्षक दिवस और अंतररष्ट्रीय दान दिवस है,क्या संयोग है कि यह दोनों एक ही दिन हैं।शिक्षा का दान देकर हमें जीवन जीने के विभिन्न तरीकों से अवगत कराने वाले ही होते हैं शिक्षक,कम से कम परिभाषा तो ये ठीक है।वैसे इस पूरे साल की सबसे बड़ी शिक्षक रही है ये महामारी और एक समुदाय के तौर पर मनुष्य की इस पर प्रतिक्रियाएं। सर्वप्रथम और जो सर्वज्ञ बात इसने ये सिखाई कि मनुष्य की प्रकृति के आगे कोई बिसात नहीं है,यह सभी प्रकृति प्रदत्त संसाधन एक दान है,फिर भी मनुष्य ने स्वयं को सर्वशक्तिमान मानते हुए , इसके प्रेम और उदारता को कमजोरी समझ के सिर्फ इसका दोहन ही किया है और इसके परिणाम स्वरूप ये महामारी दे कर प्रकृति ने स्वयं को  स्वस्थ करने के साथ ये भी याद दिला दिया कि हम मनुष्यों की क्या औकात है। ये बात हमें भूलनी नहीं चाहिए कि हम सभी प्रकृति की तुलना में क्षण भंगुर हैं,और इसने हमें जीवन यापन हेतु आश्रय एवं उपयुक्त संसाधन दिए हैं। प्रकृति में यदि सांस लेने की हवा दी है तो उसके पास उस दूषित करके विषाक्त काल वायु बना देने की क्षमता भी है। उदाहरण अनेक हैं,कितने लिखे और बताए जा सकते हैं,मुख्य बात इस

An ode to Sweden

An ode to Sweden The People of Sweden And I mean All those People Who love their Country (#Sweden) Burning of the book is not to be appreciated, you have all the rights to be angry, but not devour other religions, hatred is not going to bring you anything beautiful, not even a solution to the current problem. Always be Humanitarian but never at the cost of Losing your Culture, accept other's Traditions but not at your's Expense, be humble, be accepting, be respectful but do not lose your Ethnic heritage. Do not instigate anything that harms the peace harmony and beauty of your nation, but don't let anyone destroy it. You Ranked among the top countries in various indexes a few years back, do not let it get ruined. Do not be racist, don't Disrespect other's beliefs, but don't hesitate to retaliate against someone trying to malice the Pride of your Forefathers." Be it, anyone, even if it's one of you. Beware more, of the rats inside the house than t

हफ्ते की ख़बर -२९/०८/२०२०

क्या लिखूं यार!! हिन्दुस्तान सुशांत सिंह राजपूत को न्याय दिलाने में जुटा हुआ है,यहां के सभी पत्रकार और न्यूज चैनल अपने अपने ढंग से उसकी कहानी सुना रहे हैं,और जनता घर में बैठी ये सब तमाशा मजे से देख रही है। इसमें किसी की गलती नहीं है,आधी आबादी बेरोजगार है, बची आधी में ज़्यादातर घर से ही काम कर रहे हैं। देश भर में जगह जगह बाढ़ अाई हुई है, देश की अर्थव्यवस्था उसमें डूब रही है,लोग अपने घरों को छोड़कर जा रहे हैं,महानगरों में पानी भरा हुआ है, और किसी में "आग भी लगी है"। राजनीति जस की तस चल रही है,कुछ अच्छे काम हो रहे हैं, कुछ उसमें टांग भी अड़ा रहे हैं। कहीं दोनों ही तरफ से अनदेखी हो रही है,और किसानों  और गरीबों का नुक़सान तो कॉन्स्टेंट है। बाकी छोटी मोटी खबरों पर कोई ध्यान देता नहीं है तो हम क्या ही बताएं!! अरे! करोना तो बचा ही हुआ है,ये भी एक नया कॉन्स्टेंट हो रहा है,और इसके इलाज के नाम पर अधिकतर निजी अस्पतालों में धांधली चल ही रही है।अब कोई सबूत मत मांग लेना !!! रोज़ के रोज़ हजारों लोग करोना पॉज़िटिव हो रहे हैं, लोग ठीक भी रहे हैं,ऐसी कोई बहुत घबराने वाली बात नहीं