The carnage and it's effects
संहार का दृश्य चारों ओर फैला हुआ है, छूटे अवसर, गंवाया वक़्त,टूटे रिश्ते आदि, सब के अवशेष हैं यहां,कुछ मृत पड़े हैं,कुछ घायल हैं अंतिम सांसें गिन रहे हैं।यह दृश्य मनुष्य को अपने आत्म चिंतन की ओर धकेल देता है जिसमें उसे यह बोध होता है कि उसने बिना जाने कितनी क्रूरता से इन सभी को इस गति में पहुंचा दिया है। यह आत्म बोध उसे एक बोझ कि तरह लगने लगता है,जिसके भार से वह दबा चला जाता है एक अंत हीन अंध कूप में। जहां से बस वह यह देखता है कि उसके साथ के लोगों का जीवन कितना अलग और व्यवस्थित है,किसी के पास कम है किसी के पास ज्यादा पर सबका जीवन एक व्यवस्था के अनुरूप चल रहा है। फिर वह उस बोझ के साथ साथ स्वयं से घृणा करने लगता है और ये सोचने लगता है कि औरों ने उससे क्या क्या अलग किया। मनुष्य की सफलता उसको दिए जाने वाले सम्मान की सीधे आनुपातिक होती है।आम भाषा में कहें तो,आपकी औकात कितनी है,सिर्फ और सिर्फ यही कारक होता है,यही एक मापदंड होता है जो निश्चित करता है कि आपको कितना सम्मान मिलेगा। यही सत्य है,इससे अलग कोई कुछ कहे तो वह झूठा है,और ये बात सभी अपने अंतर्मन में भली भांति जानते हैं। सर्वप्रथम ...